लगातार तीन बार केन्द्र की सरकार बना लेने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी विपक्ष के नेताओं, खासकर राहुल गांधी को न बोलने देने पर आमादा है, जो इस बार नेता प्रतिपक्ष भी हैं। पिछली लोकसभा में जब राहुल विपक्ष के नेता नहीं थे और न ही कांग्रेस की सदस्य संख्या आज के जितनी थी, तब भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनसे खौफ़ खाते थे और उन्हें चुप कराने के सारे उपाय करते थे। वर्तमान लोकसभा में, जो पिछले साल के मध्य में गठित हुई थी, कांग्रेस की सदस्य संख्या दोगुनी तो है ही, राहुल विपक्ष के नेता हैं। ऐसे में मोदी का उनसे पहले से दोगुना भय खाना लाजि मी है। बुधवार को तो हद हो गयी जब राहुल अपनी कोई बात कहने के लिये उठे ही थे कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कार्यवाही ही स्थगित कर दी।
पिछले लम्बे समय से मानो सदन के अध्यक्ष ने यह परिपाटी बना ली है कि राहुल को उनकी बात रखने ही नहीं दी जायेगी। राहुल के बोलने के दौरान अक्सर सत्ता पक्ष के सदस्य शोर-शराबा करते हैं या उनके भाषणों के प्रमुख हिस्से रिकॉर्ड में जाने ही नहीं दिये जाते-खासकर, जब वे मोदी और उनके कारोबारी मित्रों गौतम अदानी तथा मुकेश अम्बानी का उल्लेख करते हैं। पिछली लोकसभा के आखिरी दिनों में तो सरकार उनसे इस कदर भयभीत दिखाई दी कि उनकी सदस्यता तक छीन ली गयी थी। उनका बंगला भी आनन-फानन में खाली करा लिया गया था। उनके खिलाफ एक अवमानना केस तत्काल सुनवाई में लाकर सरकार ने यह प्रबन्ध भी कराया था। अंतत: अदालती फैसले से उनकी सदस्यता बहाल हुई थी। इसके बावजूद राहुल न झुके, न मोदी तथा भाजपा सरकार पर हमले करना उन्होंने छोड़ा। वे सरकार द्वारा अदानी-अम्बानी को दिये जा रहे संरक्षण को भरपूर उजागर करते हैं और बताते हैं कि मोदी के कारण ये व्यापारी फल-फूल रहे हैं जबकि जनता बेहाल है।
बुधवार को संसद भवन के बाहर उन्होंने मीडिया के समक्ष आरोप लगाया कि जब भी वे लोकसभा सदन में कुछ बोलने के लिए खड़े होते हैं, उन्हें अपनी बात कहने नहीं दी जाती। बोलने का मौका देने की बजाये ओम बिरला नेता विपक्ष को सदन के नियमों का पालन करने की नसीहत देते रहे। उल्लेखनीय है कि कांग्रेसी सांसदों द्वारा टी-शर्ट पहनकर सदन में आने पर उन्होंने सदन की मर्यादा व आचरण का पालन करने का आग्रह किया था। उनके अनुसार यह मर्यादा और शालीनता के मानदंडों तथा सदन की परंपरा के प्रतिकूल है। बिरला ने नेहरू-गांधी परिवार का नामेल्लेख किये बगैर ध्यान दिलाया कि इसी सदन में पिता-पुत्री, मां-बेटी और पति-पत्नी सदस्य रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में नेता प्रतिपक्ष से उन्होंने अपेक्षा की कि लोकसभा प्रक्रिया के नियम 349 के अनुसार वे सदन में आचरण और व्यवहार करें। अध्यक्ष की इस बात से इंकार नहीं है कि मर्यादा तथा शालीनता का सभी को पालन करना चाहिये। सवाल यह है कि ऐसी सारी अपेक्षाएं बिरला साहब केवल विपक्ष से ही करते हैं। जब भाजपा सदस्यों के बोलने की बारी आती है तो उन्हें पूरी छूट मिलती है। उनके बारे में कई बार कहा गया है कि वे दोहरा रवैया अपनाते हैं और भाजपा-सदस्य के रूप में बर्ताव करते हैं। वे खुद विपक्षी नेताओं के भाषणों में अड़ंगा डालते हैं। यहां तक कि सरकार का बचाव भी करते हैं। अक्सर चर्चाओं के उन हिस्सों को काट दिया जाता है जिनमें सरकार की, वह भी जिनमें नरेन्द्र मोदी की आलोचना होती है।
बहरहाल, सवाल यह है कि आखिर राहुल से किस बात का सत्ता को खौफ है? कहा जा सकता है कि राहुल की लगभग हर बात से मोदी और उनकी सरकार को डर लगती है। वे जब भी कोई मुद्दा उठाते हैं या किसी विषय पर अपनी राय रखते हैं, तो वह सरकार को परेशान करने वाली होती है। देश के सारे संसाधनों को कुछ व्यवसायियों को सौंपना, भाजपा सरकारों का अन्याय व भ्रष्टाचार समेत ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें सामने लाकर राहुल मोदी का भ्रष्टाचारी व निरंकुश चेहरा सामने ला चुके हैं।
लोकसभा-2024 में उनकी वायनाड व रायबरेली से जीत ने उनकी ताकत को तो बढ़ाया ही, उनकी बहन प्रियंका का वायनाड से जीतकर आना भाजपा के लिये और भी परेशानी का सबब है। इसलिये बुधवार को जब राहुल ने सदन में बाहर निकलते हुए प्रियंका के गालों को स्नेहपूर्वक हाथ लगाया, तो चिढ़े हुए बिरला ने उन्हें शालीनता की एक और डोज़ चढ़ा दी। ये वही बिरला हैं जो पिछली लोकसभा में दिल्ली के सांसद रमेश विधूड़ी द्वारा दानिश अली को साम्प्रदायिक गालियां देते हुए सुनते रहे थे। बिरला, मोदी व सरकार के सामने ज्यादा दिक्कत यह है कि अब राहुल अपमान और निलम्बन सहित किसी भी भय से ऊपर उठ चुके हैं।
दो यात्राओं (भारत जोड़ो व न्याय यात्रा) से निकले सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक विमर्श पर आधारित राहुल के भाषण जनता को न्याय दिलाने के मकसद से होते हैं। जातिगत जनगणना की उनकी मांग, संविधान की रक्षा तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का विरोध मोदी की जमीन हिलाने के लिये काफी होते हैं। यही कारण है कि मोदी राहुल के रहते सदन में तभी आते हैं जब बेहद ज़रूरी हो। स्मृति ईरानी (पिछली लोकसभा में), अनुराग ठाकुर, निशिकांत दुबे जैसे सांसदों के जरिये मोदी राहुल पर आक्रमण कराते रहे हैं। यही राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के साथ होता है। एक ओर मोदी कहते हैं कि 'आलोचना लोकतंत्र का आधार हैÓ, वहीं वे अपने खिलाफ कोई बात सदन में होने नहीं देना चाहते। उनके एजेंडा को बिरला चलाते हुए दिखते हैं।